कल शाम एक डिनर में गया था जहां 7 परिवार एकत्रित थे। वहां मौजूद हमारे एक पारिवारिक मित्र मित्तल साहब ने एक बहुत गज़ब का किस्सा सुनाया। ये बात लगभग 20 साल पुरानी है। वे अपने कारोबार के सिलसिले में एक हफ्ते के लिए ज़र्मनी गए थे। एक सुबह वे अपने एक जर्मन मित्र के साथ सैर पर निकले। सैर करते हुए उन्हें एक स्थान पर सड़क पार करनी पड़ी। पैदल चलने वालों के लिए लाईट उस समय लाल थी, लेकिन हमारे मित्तल साहेब खाली देख कर सड़क पार करने लगे। उनके ज़र्मन दोस्त ने उन्हें फौरन पीछे खींच लिया और चौंक कर कहा .. मिस्टर मित्तल ये क्या कर रहे हो आप, लाइट अभी लाल है। मित्तल साहब ने जवाब दिया कि हाँ मैंने लाल लाईट देख ली है पर अभी सुबह सवेरे दूर-दूर तक कोई गाड़ी नहीं है। इसलिए सड़क पार कर लेने में क्या ख़तरा हो सकता है।
यह सुनकर उस ज़र्मन बन्दे ने जो कहा वो मित्तल साहेब के दिमाग में आज तक ज्यों का त्यों छपा हुआ है। उस ने कहा ”इस वक़्त लाल लाईट होने पर भी सड़क पार करने से ख़तरा आप को और मुझे तो नहीं है। लेकिन, यदि ऐसा करते हुए किसी बच्चे ने हमें देख लिया तो वह क्या सीखेगा। हमारी आदतें सबसे पहले हमारे बच्चे सीखते हैं और ये हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे बच्चे देश के क़ानून का अनादर करना सीखें। देश का क़ानून तोड़ने वाले कभी भी अच्छा देश नहीं बना सकते”।
इस के बाद डिनर पार्टी में इस बात पर बहुत देर तक चर्चा होती रही। कोई सड़क पर लोगों के रोंग साइड गाड़ी चलाने से परेशान था तो कोई पुलिस को दोष दे रहा था। इसी दौरान अचानक किसी ने पूछा कि आखिर हम करें तो क्या करें .. देश बर्बाद हो रहा है, आने वाली जेनेरेशन का भविष्य अँधेरे में है ….. एक लम्बी खामोशी के बाद एक सज्जन ने कहा कि बदलाव तो हम भी चाहते हैं, पर इस के लिए आवाज़ उठाने में खतरे बहुत ज्यादा हैं। वैसे भी जो काम सरकार का है वो हम क्यों करें? एक अन्य भाई ने देश की इस दुर्दशा के लिए सरकारी अफसरों और नेताओं को कोस कर अपनी भड़ास निकाली। प्रधानमंत्री से लेकर राहुल गांधी तक के सर पर इस समस्या का ठीकड़ा फोड़ा गया लेकिन फिर भी हर कोई असंतुष्ट और परेशान ही दिखा।
अंत में थोड़ा और गहरा चिंतन किया गया और सब लोग इस बात पर राज़ी हो गए कि बदलाव के लिए हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं। ये तय हुआ कि अब से हम खुद देश के क़ानून का सम्मान करेंगे और कोशिश करेंगे कि हमारे बच्चे भी ये सीखें। इस के अलावा हमारे सामने कुछ भी गलत हो रहा होगा तो हम गलत करने वालों को टोकेंगे ज़रूर।
”गलत को सहते रहने के बजाय उसके विरुद्ध बोलना और टोकना बदलाव का रास्ता खोल सकता है” ये बात अब हम सभी को समझ आ गयी थी। हमने तो ऐसा करना शुरू भी कर दिया है। रौंग साइड से आने वाली गाड़ियों को टोकने से मुझे लगता है कि मैंने बदलाव के लिए अपनी लड़ाई शुरू कर दी है। गलत को गलत कहने से मुझ को अपने अन्दर भी बदलाव नज़र आ रहा है। कोई भी नियम तोड़ने का मन ही नहीं करता अब तो। मुझे लगता है कि क़ानून तोड़ते और गलती करते लोगों को टोकने भर से ही काफी बदलाव आ जाएगा। वैसे आप इस बारे में क्या सोचते हैं? हो सके तो मुझे भी बताना। अपने बच्चों के लिए बेहतर देश और समाज बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने को क्या आप भी तैयार हैं?
आपका अपना
अनिल कुमार