Covid-19: पुरानी दिल्ली के युवाओं के प्रयासों से बची 700 लोगों की जान, जोखिम में जान डालकर कर रहे मदद

पढ़िए दैनिक जागरण की ये खबर…

बी ह्यूमन नाम की संस्था से जुड़े युवा अपनी जान जोखिम में डालकर सात सौ ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं। पुरानी दिल्ली के युवाओं के इस समूह ने समाज सेवा को दोस्ती बनाए रखने का जरिया बनाकर 2017 में समाज सेवा करना शुरू किया था।

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। इलाज, आक्सीजन और दवाओं के अभाव में सिस्टम की चौखट पर बेदम होती इंसानियत और एक-एक सांस के लिए तड़पते हुए हर रोज मरते सैकड़ों लोग। फिर भी, सियासत का मिजाज बदलता नहीं दिख रहा है। इस सबके बीच पुरानी दिल्ली के कुछ युवाओं ने सियासत के बेसुरे गीत गाती सरकार और संवेदनहीनता के समंदर में तैरते सिस्टम से अपेक्षाएं रखने के बजाय खुद की जरूरतें खुद पूरी करने की राह दिखाई है। उनकी कोशिशें इस उम्मीद को ताकत देती नजर आ रही हैं कि यह काली रात गुजरेगी और नई सुबह जरूर आएगी।

बी ह्यूमन नाम की संस्था से जुड़े युवा अपनी जान जोखिम में डालकर सात सौ ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं। पुरानी दिल्ली के युवाओं के इस समूह ने समाज सेवा को दोस्ती बनाए रखने का जरिया बनाकर 2017 में समाज सेवा करना शुरू किया था। धीरे-धीरे 200 से अधिक लोग उनके साथ जुड़ गए।

कोरोना संक्रमण बढ़ने के बाद जब लोग एक-एक सांस के लिए तरसने लगे तो इन युवाओं ने लोगों को मुफ्त में आक्सीजन सिलेंडर देना शुरू किया। इसके लिए खुद आक्सीजन के बड़े सिलेंडर जुटाते हैं और आक्सीजन को छोटे सिलेंडर में भरकर जरूरतमंदों को देते हैं। पिछले साल कोरोना से बचाव के लिए ऐहतियातन खरीदकर रखे गए 75 से अधिक छोटे सिलेंडर अब बहुत काम आ रहे हैं। पिछले साल भी बी ह्यूमन ने 18 आइसोलेशन सेंटर बनाए थे। हर एक सेंटर में आपात स्थिति के लिए चार-चार सिलेंडर रखे गए थे।

इस अभियान से जुड़े दरियागंज निवासी मोहम्मद सुहैल बताते हैं कि पुरानी दिल्ली तंग गलियों का शहर है। ऐसे में अस्पताल तक मरीज को पहुंचाने में कई घंटे लग जाते हैं। इसलिए ये सिलेंडर लाए गए थे। पिछले वर्ष इसकी खास आवश्यकता नहीं पड़ी। पर हर सांस कितनी कीमती है। इसका एहसास इस आपदा में हुआ। इसलिए हमने 200 सिलेंडर और बढ़ाए हैं। 100 जंबों सिलेंडर खरीदे हैं, ताकि अधिक से अधिक लोगों की मदद कर सकें। कुल 400 के करीब सिलेंडर हो गए हैं।

वहीं, अब तक 700 से अधिक लोगों को आक्सीजन के माध्यम से मदद पहुंचा चुके हैं। हालांकि, रोजाना दो से तीन हजार लोग संपर्क, लेकिन सबकी मदद नहीं कर पाने का हमेशा अफसोस बना रहता है।साभार-दैनिक जागरण

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