Lockdown- Unlock Update: कोरोना संक्रमण का समाधान नहीं है पूरे समय लाकडाउन, ऐसे में अनलाक कितना सही ; जानें- सब कुछ

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संक्रमण पर काफी हद तक लगाम के बाद अब अनलाक की प्रक्रिया चल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि अभी भले ही मामलों में गिरावट आई है लेकिन पहली लहर के पीक के हिसाब से मामले बहुत कम नहीं हुए हैं। ऐसे में अनलाक कितना सही है?

नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना महामारी की दूसरी लहर आते ही लाकडाउन की पैरवी होने लगी थी। धीरे-धीरे लगभग सभी प्रभावित राज्यों ने स्थानीय स्तर पर लाकडाउन का एलान भी कर दिया था। संक्रमण पर काफी हद तक लगाम के बाद अब अनलाक की प्रक्रिया चल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि अभी भले ही मामलों में गिरावट आई है, लेकिन पहली लहर के पीक के हिसाब से मामले बहुत कम नहीं हुए हैं। ऐसे में अनलाक कितना सही है?

ऐसे में सवाल उठता है कि लाकडाउन लगाने का सही समय क्या है? अध्ययन बताते हैं कि कोरोना की पूरी लहर के दौरान लाकडाउन लगाए रखना कोई समाधान नहीं है। लाकडाउन का बड़ा आर्थिक, सामाजिक और मानसिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में इसे बहुत जरूरी होने पर ही लगाना चाहिए। लगातार लाकडाउन रहे तो फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। लाकडाउन के असर को लेकर दूसरी लहर से मिले अनुभव का फायदा उठाकर सरकारें भविष्य में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए बेहतर रणनीति बना सकती हैं।

क्या है लाकडाउन का सही समय?

लाकडाउन का असल उद्देश्य संक्रमण की गति थामना है। ऐसे में इसका सबसे ज्यादा फायदा भी तभी है, जब संक्रमण की गति बढ़ रही हो। संक्रमण की गति को मापने का तरीका है इफेक्टिव रीप्रोडक्शन नंबर यानी आरई। जब आरई एक से ऊपर होने का अर्थ है कि प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति एक से ज्यादा व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है। इस स्थिति में संक्रमण का ग्राफ ऊपर चढ़ता है। इस समय लाकडाउन सही कदम है। वहीं आरई एक से नीचे होने पर ग्राफ स्वत: ही नीचे आने लगता है। ऐसे समय में लाकडाउन से होने वाला नुकसान इसके फायदे से ज्यादा हो जाता है।

कब बढ़ाना चाहिए लाकडाउन की ओर कदम?

कोरोना की लहर में पांच तरह के पीक आते हैं। जिस राज्य में पांचों पीक बीत चुके हों, वहां तत्काल लाकडाउन हटा लेना चाहिए। जिन राज्यों में मूमेंटम और न्यूमैरिकल पीक बीत गए हों, वहां भी जिलावार स्थिति देखते हुए सतर्कता के साथ अनलाक की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है।

कोरोना के पांच पीक

दूसरी लहर के दौरान देश में पांच तरह के पीक देखे गए हैं। इन्हें समझकर सही नीति बनाने में मदद मिल सकती है।

1- मूमेंटम पीक : नए मामलों के बढ़ने की दर सबसे पहले पीक पर पहुंचती है। दर में गिरावट के बाद भी नए मामले बढ़ते हैं, लेकिन कुछ धीमी गति से।

2 – न्यूमैरिकल पीक : मूमेंटम पीक बीतने के कुछ समय बाद रोजाना के नए मामलों का पीक आता है, जिसे न्यूमैरिकल पीक कहा जाता है।

3- एक्टिव केस पीक : न्यूमैरिकल पीक बीतने के बाद सक्रिय मामलों का पीक आता है, जिसमें सक्रिय मामले अपने सर्वोच्च पर पहुंचते हैं।

4 – मृत्यु दर बढ़ने का पीक : मूमेंटम पीक ही तरह यह रोजाना मौत के मामलों में वृद्धि की दर है। इस पीक के बीतने के बाद रोजाना मौत के आंकड़े बढ़ते हैं, लेकिन धीमी गति से।

5 – रोजाना मौत के आंकड़ों का पीक : वह बिंदु जब रोजाना होने वाली मौत का आंकड़ा अपने सर्वोच्च स्तर पर होता है। इसके बाद इसमें गिरावट आनी शुरू होती है।

दिल्ली में मूमेंटम पीक पर पहुंचकर लगा लाकडाउन

लाकडाउन-19 अप्रैल

मूमेंटम पीक 20 अप्रैल

न्यूमैरिकल पीक 23 अप्रैल

मृत्यु दर बढ़ने का पीक 25 अप्रैल

रोजाना मौत के आंकड़ों का पीक 3 मई

एक्टिव केस का पीक 1 मई

महाराष्ट्र में लाकडाउन समय पर लगाया गया, लेकिन अनलाक में देरी हुई

लाकडाउन 4 अप्रैल

मूमेंटम पीक 9 अप्रैल

न्यूमैरिकल पीक 24 अप्रैल

मृत्यु दर बढ़ने का पीक 28 अप्रैल

रोजाना मौत के आंकड़ों का पीक 23 मई

एक्टिव केस का पीक 25 अप्रैल

(राष्ट्रीय स्तर पर मूमेंटम पीक 23 अप्रैल, न्यूमैरिकल पीक 8 मई, मृत्यु दर बढ़ने का पीक 29 अप्रैल, रोजाना मौत के आंकड़ों का पीक 23 मई और एक्टिव केस का पीक 13 मई को देखा गया।)

साभार-दैनिक जागरण

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