क्या कैश से भी फैल सकता है कोविड-19 इन्फेक्शन; जानिए क्या कहती है जर्मनी की रिसर्च

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देश में कोरोना के मामले एक बार फिर बढ़ने लगे हैं। शुक्रवार को 41,495 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। एक्टिव केस बढ़कर फिर से 4 लाख के पार पहुंच गए हैं। पूरे देश में अनलॉक हो रहा है और इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ रहा है, जो तीसरी लहर का कारण बन सकता है। ऐसे में जर्मनी की एक रिसर्च का दावा सुकून देने वाला है कि कैश से कोरोनावायरस के फैलने का खतरा बहुत कम है।

यूरोपियन सेंट्रल बैंक के विशेषज्ञों ने रूहर-यूनिवर्सिटेट बोकम के डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल मॉलीक्यूलर वायरोलॉजी के साथ मिलकर रिसर्च की। उद्देश्य यह जानना था कि क्या कैश कोविड-19 इन्फेक्शन फैलने का कारण हो सकता है? आइए जानते हैं कि क्या है यह रिसर्च? कैसे इस नतीजे पर पहुंचे जर्मन वैज्ञानिक?

किस तरह की गई यह स्टडी?

  • प्रोफेसर आईके स्टेनमान और डॉ. डेनियल टोड के नेतृत्व में रिसर्चर्स ने एक मॉडल बनाया है। इससे यह टेस्ट किया जा सकता है कि रियल-लाइफ परिस्थितियों में कैश से स्किन पर कितने इन्फेक्शियस वायरस पार्टिकल्स ट्रांसफर हो सकते हैं।
  • जर्नल आईसाइंस (iScience) में प्रकाशित इस स्टडी में रिसर्चर्स ने यह पता लगाने की कोशिश की कि यूरो के सिक्कों और नोट्स पर कितने समय तक वायरस जीवित रहता है। इसके लिए सिक्कों और नोट्स को वायरस सॉल्युशंस के साथ रखा गया और कुछ दिनों तक उनकी निगरानी की गई।
स्टडी कहती है कि नोट अगर सूखा होगा तो उस पर वायरस कम से कम समय तक जीवित रहता है।
स्टडी कहती है कि नोट अगर सूखा होगा तो उस पर वायरस कम से कम समय तक जीवित रहता है।

क्या रहा स्टडी का नतीजा?

  • स्टेनलेस स्टील की सरफेस पर यानी सिक्कों और नोट्स पर वायरस अलग-अलग समय तक जीवित रहा। स्टील की सरफेस पर सात दिन बाद भी इन्फेक्शियस वायरस जीवित मिला। पर 10 यूरो के नोट पर तीन दिन बाद वायरस पूरी तरह गायब हो गया।
  • 10 सेंट के सिक्के पर 6 दिन, 1 यूरो के सिक्के पर दो दिन और 5 सेंट के सिक्के पर एक घंटे बाद कोई वायरस डिटेक्ट नहीं हुआ। डेनियल का कहना है कि 5 सेंट का सिक्का कॉपर का बना है, जिस पर वायरस ज्यादा समय तक नहीं टिकता।

इससे हम पर क्या असर हो सकता है?

  • किसी सरफेस से हमारी उंगलियों तक यह इन्फेक्शियस वायरस कैसे ट्रांसफर होता है, यह जानने के लिए रिसर्चर्स ने नई तकनीक विकसित की। इसके लिए कंट्रोल्ड इनवायरनमेंट में इन्फेक्टेड बैंकनोट्स, सिक्के और क्रेडिट-कार्ड जैसी पीवीसी प्लेट्स के जरिए यह देखा गया कि कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) किस तरह हाथों तक पहुंचता है।
  • तब इन गीली और पूरी तरह से सूख चुकी सरफेस को छूने को कहा गया या आर्टिफिशियल स्किन से उन्हें टच किया गया। सेल कल्चर के जरिए यह देखा गया कि सरफेस से उंगलियों तक कितने वायरस पार्टिकल्स ट्रांसमिट हुए और इनमें कितने इन्फेक्शियस थे।
  • डेनियल का कहना है कि हमने देखा कि सूखी सरफेस से ट्रांसमिशन हुआ ही नहीं। रियल-लाइफ परिस्थितियों में भी ऐसा ही होता है कि सिक्के या नोट्स गीले नहीं होते। इस आधार पर कह सकते हैं कि कैश से SARS-CoV-2 इन्फेक्शन फैलने का खतरा काफी कम है।
रिसर्चर्स का दावा है कि शेल्फ लाइफ को लेकर कोरोनावायरस के ओरिजिनल स्ट्रेन और अल्फा, डेल्टा वैरिएंट्स में कोई अंतर नहीं है। यानी नई रिसर्च का नतीजा कोरोना के सभी वैरिएंट्स पर एक-सा होगा।
रिसर्चर्स का दावा है कि शेल्फ लाइफ को लेकर कोरोनावायरस के ओरिजिनल स्ट्रेन और अल्फा, डेल्टा वैरिएंट्स में कोई अंतर नहीं है। यानी नई रिसर्च का नतीजा कोरोना के सभी वैरिएंट्स पर एक-सा होगा।

पर क्या यह दावा वैरिएंट्स को लेकर भी किया जा सकता है?

  • हां। स्टडी कहती है कि यह रिसर्च उन स्टडी से मेल खाती है जिसमें ज्यादातर केसेस में इन्फेक्शन की वजह एरोसॉल या ड्रॉपलेट्स बताई गई है। सरफेस से इन्फेक्शन होने की आशंका बिल्कुल ही कम है। यह स्टडी SARS-CoV-2 के अल्फा वैरिएंट के साथ की गई है।
  • लीड रिसर्चर आईके का कहना है कि इस समय सबसे ज्यादा तेजी से फैल रहा डेल्टा वैरिएंट भी इसी तरह का बर्ताव करता है। उनका कहना है कि अब तक जितने भी वैरिएंट्स सामने आए हैं, उनकी शेल्फ लाइफ ओरिजिनल वायरस से अलग नहीं निकली है।

इससे पहले नोट्स और कोरोनावायरस के बीच की स्टडी क्या कहती है?

  • पिछले साल अक्टूबर 2020 में एक रिसर्च सामने आई थी। उसमें कहा गया था कि करेंसी नोट्स, ग्लास, प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 28 दिन तक वायरस रहता है। यह स्टडी ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी CSIRO ने की थी।
  • इस स्टडी में रिसर्चर्स ने कोरोनावायरस को अलग-अलग सतहों पर एक महीने तक छोड़ दिया था। सूर्य के अल्ट्रावायलेट लाइट इफेक्ट से बचाने के लिए डार्क रूम में रखा गया। उन्होंने यह भी पाया कि कॉटन जैसी पोरस सरफेस के बजाय ठोस सरफेस पर कोरोनावायरस अधिक समय तक जीवित रहता है।

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