गरीबी ने जकड़ी दो बहनों की देश के लिए खेलने की तमन्ना, चार बार खेल चुकी हैं नेशनल, मां मनरेगा में कर रही काम

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Shahpur National Player Sisters तमन्ना है देश के लिए खेलने की। मेडल जीतने की लेकिन पिता की मौत ने सारे सपने तोड़ दिए। अब गरीबी की बेडिय़ों ने जकड़ रखा है। स्पोटर्स हास्टल भी छूट गया। कोचिंग व रहना तो मुफ्त था लेकिन चुनौती थी सिरमौर व धर्मशाला आने-जाने की।

परसेल (शाहपुर)। तमन्ना है देश के लिए खेलने की। मेडल जीतने की, लेकिन पिता की मौत ने सारे सपने तोड़ दिए। अब गरीबी की बेडिय़ों ने जकड़ रखा है। स्पोटर्स हास्टल भी छूट गया। कोचिंग व रहना तो मुफ्त था, लेकिन पहाड़ जैसी चुनौती थी सिरमौर व धर्मशाला आने-जाने की। किराये के भी पैसों का जुगाड़ नहीं हो पाया। मां मनरेगा में दिहाड़ी लगाकर तीन बेटियों को पढ़ा रही हैं। चौथी बेटी की हाल ही में शादी हो गई है। यह दास्तां है शाहपुर हलके की प्रेई पंचायत के परसेल गांव की नेशनल हाकी खिलाड़ी रिया व रश्मि की। गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवार से संबंध रखने वाली हाकी खिलाड़ी 20 वर्षीय रिया व 17 वर्षीय रश्मि चार बार नेशनल खेल चुकी हैं।

तीसरी बहन 15 वर्षीय नेहा दसवीं में पढ़ती है। स्लेटपोश मकान के एक कमरे में तीनों बहनें मां के साथ रह रही हैं। अक्टूबर 2016 में इन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब पिता प्रभात सिंह की बीमारी से मौत हो गई। सरकारी मदद के नाम पर उन्हेंं तब सिर्फ 10 हजार रुपये मिले थे। प्रभात सिंह की जमा पूंजी उनकी बीमारी पर खर्च हो गई, जो बचा था उसे मां कल्पना ने बेटियों की कोचिंग पर खर्च कर दिया। रिया स्पोट्र्स हास्टल माजरा (सिरमौर) व रश्मि साई धर्मशाला में हाकी की बारीकियां सीखती थीं। अब मां कल्पना मनरेगा में दिहाड़ी लगाकर बेटियों का पालन-पोषण तो कर रही हैं, लेकिन उन्हेंं स्पोट्र्स हास्टल नहीं भेज पा रही। होनहार बेटियां हाकी में अपना व देश का नाम रोशन करना चाहती हैं, लेकिन गरीबी बेडिय़ां बन गई है।

एक कमरे में चार लोग, शौचालय भी नहीं

मां के साथ तीन बहनें स्लेटपोश घर के एक कमरे में गुजर-बसर कर रही हैं। इनके पास शौचालय तक की सुविधा भी नहीं है। कहने को परिवार बीपीएल सूची में शामिल है, लेकिन अभी तक न तो घर और न ही शौचालय की सुविधा इन्हें मुहैया करवाई गई है।

पिता ने सिखाई हाकी की एबीसी

रिया व रश्मि बताती हैं कि पिता प्रभात सिंह भी हाकी खिलाड़ी थे। हाकी की एबीसी उन्होंने पिता से ही सीखी। पिता जिंदा थे तो उन्हेंं कोच की जरूरत नहीं थी। बचपन से हाकी स्टिक थाम ली। वे पिता की कोचिंग से ही नेशनल खेल पाईं। पिता के बाद अब कोई सहारा नहीं मिल रहा।

यह बोली मजबूर मां

प्रेई पंचायत के परसेल गांव की कल्‍पना देवी का कहना है पति प्रभात सिंह की मौत के बाद मैं ही चारों बेटियों का सहारा हूं। जैसे-तैसे इनकी पढ़ाई जारी रखी है। वह हाकी खिलाड़ी थे तो बेटियों को भी हाकी के गुर सिखाए। दो बेटियां नेशनल खेल चुकी हैं। आगे भी खेलना चाहती हैं, लेकिन मुझ में इतना सामर्थ्‍य नहीं। बड़ी बेटी रोमा की शादी करवा दी है। अब रिया, रश्मि व नेहा को दो वक्त की रोटी व कपड़ों का ही जुगाड़ कर सकती हैं। साभार- दैनिक जागरण

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