भास्कर एक्सक्लूसिव-2:अरशद मदनी ने कहा- हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं, RSS प्रमुख ने कुछ भी गलत नहीं कहा, मैं तो मानता हूं संघ अब सही रास्ते पर है

पढ़िए दैनिक भास्कर की ये खबर…

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद दारुल उलूम भी चर्चा में है। उसे तालिबान की विचारधारा से जोड़कर देखा जा रहा है। इसी बीच हाल ही में मुसलमानों को लेकर RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने भी सुर्खियां बटोरी हैं। इसको लेकर दैनिक भास्कर पहला मीडिया संस्थान है, जो सहारनपुर के देवबंद में स्थित दारुल उलूम पहुंचा और वहां के प्रिंसिपल और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी से बात की।

कल के इंटरव्यू में हमने मदनी से तालिबान और दारुल उलूम के रिश्ते को लेकर खुलकर बात की थी। आज दूसरी सीरीज में हमने मदनी से पूछा कि वे संघ प्रमुख के बयान को लेकर क्या राय रखते हैं? दारुल उलूम में महिलाओं को मजहबी शिक्षा क्यों नहीं दी जाती है? इसी तरह और भी कई सवाल हैं, जिनको लेकर हमने मदनी से खुलकर बातचीत की। पढ़िए उस इंटरव्यू के प्रमुख अंश…

Q. RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- हिंदू और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं, आप उनके बयान से कितना इत्तेफाक रखते हैं?
उन्होंने गलत क्या कहा? हिंदुस्तान में रहने वाले गुर्जर, जाट, राजपूत हिंदू भी हैं और मुसलमान भी हैं। यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं तो उनकी इस बात की बहुत तारीफ करता हूं। मैं तो समझता हूं कि RSS का जो पुराना रवैया था, वह बदल रहा है और वे सही रास्ते पर हैं।

Q. भागवत का कहना है कि हमें भारतीयता की सोच के साथ चलना होगा न कि मुस्लिम वर्ग की सोच के साथ?

मुसलमान को अपने मुल्क से प्रेम है। ये जो केस पकड़े जाते हैं दहशतगर्दी के, वे ज्यादातर झूठे होते हैं। क्योंकि अगर यह सब सच्चे हैं तो फिर निचली अदालत से सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट से लोग कैसे बरी हो जाते हैं? मेरे सामने कई ऐसे केस आए हैं, जहां लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट ने फांसी की सजा दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस शख्स को बाइज्जत बरी कर दिया।

Q. दारुल उलूम में किन्हें और कैसी तालीम दी जाती है?
मुल्क में एक लाख से ज्यादा मस्जिदें हैं, जहां 5 वक्त की अजान दी जाती है और 5 वक्त की नमाज भी पढ़ी जाती है। हमें हर मस्जिद के लिए इमाम चाहिए। इन मस्जिदों में जो बच्चे आते हैं, उनको तालीम देने के लिए मौलवी चाहिए। नहीं तो हमारी मस्जिदें वीरान हो जाएंगी। यह हमारा निसाब-ए-तालीम है जो खालिस मजहबी है। हम स्टूडेंट्स को प्रोफेसर, एडवोकेट और डॉक्टर नहीं बनाते। हम उनको खालिस मजहबी इंसान बनाते हैं, जो नमाज पढ़ाए, मजहबी तालीम दे।

इसके अलावा इस्लाम का तसव्वुर कि दुनिया के अंदर मजहब से ऊपर रहकर प्यार मोहब्बत से रहना, वह सिखाते हैं। हम उन्हें यह बताते हैं कि अपने धर्म की खिदमत करनी चाहिए, लेकिन किसी को पाबंद नहीं बनाते। स्टूडेंट किसी और यूनिवर्सिटी में जाकर तालीम हासिल करना चाहता है तो हमें कोई दिक्कत नहीं।

Q. यहां तालीम को कितने हिस्सों में बांटा जाता है?
1 से 5 क्लास तक हम सिर्फ कुरान पढ़ाते हैं। इसके बाद 5 साल का कोर्स है। इसके अंदर हिंदी, भूगोल, हिसाब और कुछ फारसी जुबान पढ़ाते हैं। इसके बाद अरबी का कोर्स आता है। यह 8 साल का है। इसमें अरबी की ग्रामर पढ़ाकर बच्चों को कुरान और हदीस की व्याख्या पढ़ाने के लिए तैयार करते हैं। आखिर में हम उन्हें हदीस और कुरान का पढ़ा हुआ बना देते हैं।

अगर बच्चा बहुत तेज है तो फिर आगे और दर्जात हैं। अगर वह फतवों का एक्सपर्ट बनना चाहता है, तो फिर उसे फतवे का कोर्स कराते हैं। अगर वह अरबी अदब का कोर्स करना चाहता है तो फिर उसमें लगा देते हैं। सबसे टॉपर बच्चे ‘हदीस’ की एक्सपर्टीज हासिल करते हैं। कुछ बच्चे मसले बताने की एक्सपर्टीज हासिल करते हैं, जैसे क्या चीज इस्लाम में जायज है और क्या नाजायज।

Q. अब तक मजहबी तालीम का औरतों के लिए भी कोई सेंटर क्यों नहीं बना?
हमने कभी नहीं सोचा, क्योंकि दारुल उलूम का मकसद मुजाहिद (योद्धा) बनाना है। दरअसल आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते 1857 में दिल्ली के अंदर 33 हजार उलेमाओं को अंग्रेजों ने लाल किले से लेकर जामा मस्जिद तक के दरख्तों में फांसी दे दी थी। उनके बच्चे यतीम हो गए थे। खाने को कुछ नहीं था, बेचारे भीख मांगने लगे। इन बच्चों को यतीम बनाने वाले अंग्रेजों ने ही बच्चों की मांओं से कहा, तुम इन बच्चों को हमें दे दो। हम इन्हें खाना देंगे, कपड़ा देंगे, पनाह और तालीम देंगे। पढ़ने के बाद नौकरी भी देंगे।

मुहम्मद कासिम नानोतवी, फजरुल रहमान उस्मानी सैय्यद मो.आबिद के लिए यह बात नाकाबिल-ए बर्दाश्त थी कि जिन्होंने अंग्रेजों से मुजाहिदों की तरह आजादी के लिए लड़ाई की, उनकी ही औलाद फिर अंग्रेजों की मुलाजिम बने। लिहाजा इन्होंने दारुल उलूम की नींव रखी। यहां अंग्रेजों की तरह ही बच्चों को सब कुछ देने के वादे के साथ मुफ्त तालीम की भी व्यवस्था की गई। उनका मकसद मुजाहिदों के बच्चों को मुजाहिद (योद्धा) बनाना था। औरतों को मुजाहिद बनाने का मकसद तो न पहले कभी हमारा था और न आज है।

हमने लोगों से कहा, औरतों के लिए भी मजहबी स्कूल-कॉलेज खोले जाएं। कई स्कूल-कॉलेज खुले भी, आज लड़कियां खूब मजहबी शिक्षा ले रही हैं, लेकिन दारुल उलूम के भीतर लड़कियों को पढ़ाने का हमने कभी मन नहीं बनाया। यह खालिस मर्दों को मजहबी शिक्षा देने का केंद्र है।

Q. इस्लामिक कानून शरिया औरतों की पढ़ाई के लिए क्या कहता है?
हदीस के अंदर लिखा है, औरतें तालीम हासिल कर सकती हैं, लेकिन मर्दों से अलग रहकर। देखिए जहां भी खतरा होगा राह रवी (भटकने) का खतरा होगा। वहां औरतें नहीं जा सकतीं। मर्दों के साथ पढ़ने में औरतों के भटकने का खतरा है।

Q. औरतें कौन-कौन सा पेशा नहीं चुन सकतीं?
सबकुछ चुन सकती हैं, लेकिन पर्दे के साथ। औरत का लिबास ऐसा हो कि अल्लाह ने औरतों का जिस्म जैसे ढाला है वह कपड़ों के साथ जाहिर न हो। कपड़े बिल्कुल ढीले-ढाले हों। ऐसे कपड़ों के साथ हिजाब लगाकर वह जो पेशा अख्तियार करना चाहें करें, लेकिन ध्यान रहे कि सिर्फ आंख और चेहरे को दिखाने की ही इजाजत शरिया देता है।

Q. मुस्लिम औरतें अगर खिलाड़ी बनना चाहें, तो क्या बन सकती हैं?
नहीं, बिल्कुल नहीं। ऐसा कोई काम नहीं कर सकतीं, जिसमें औरतों का भागना-दौड़ना मर्द देखें।

Q. कॉमन सिविल कोर्ट के पक्ष में आप हैं?
अरे मोहतरमा आप कितने सवाल पूछेंगी। मुझे दिल्ली जाना है। इसका मतलब तो यह है कि मैं यहीं बैठा रहूं।

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